1000 Names of Lord Vishnu With Meaning

भगवान श्री विष्णु के 1000 नाम

1000 Names of Lord Vishnu

1000 Names of Lord Vishnu With Meaning

भगवान श्री विष्णु के 1000 नाम

 

1. विश्वम् : जो स्वयं में ब्रह्मांड हो जो हर जगह विद्यमान हो

2. विष्णुः जो हर जगह विद्यमान हो

3. वषट्कारः जिसका यज्ञ और आहुतियों के समय आवाहन किया जाता हो

4. भूतभव्यभवत्प्रभुः भूत, वर्तमान और भविष्य का स्वामी

5. भूतकृत् : सब जीवों का निर्माता

6. भूतभृत् : सब जीवों का पालनकर्ता

7. भावः भावना

8. भूतात्मा: सब जीवों का परमात्मा

9. भूतभावनःसब जीवों उत्पत्ति और पालना का आधार

10. पूतात्मा: अत्यंत पवित्र सुगंधियों वाला

11. परमात्मा: परम आत्मा

12. मुक्तानां परमा गतिः: सभी आत्माओं के लिए पहुँचने वाला अंतिम लक्ष्य

13. अव्ययः अविनाशी

14. पुरुषः पुरुषोत्तम

15. साक्षी बिना किसी व्यवधान के अपने स्वरुपभूत ज्ञान से सब कुछ देखने वाला

16. क्षेत्रज्ञः क्षेत्र अर्थात शरीर; शरीर को जानने वाला

17. अक्षरः कभी क्षीण न होने वाला

18. योगः जिसे योग द्वारा पाया जा सके

19. योगविदां नेता योग को जानने वाले योगवेत्ताओं का नेता

20. प्रधानपुरुषेश्वरः प्रधान अर्थात प्रकृति; पुरुष अर्थात जीव; इन दोनों का स्वामी

21. नारसिंहवपुः नर और सिंह दोनों के अवयव जिसमे दिखाई दें ऐसे शरीर वाला

22. श्रीमान् जिसके वक्ष स्थल में सदा श्री बसती हैं

23. केशवः जिसके केश सुन्दर हों

24. पुरुषोत्तमः पुरुषों में उत्तम

25. सर्वः सर्वदा सब कुछ जानने वाला

26. शर्वः विनाशकारी या पवित्र

27. शिवः सदा शुद्ध

28. स्थाणुः स्थिर सत्य

29. भूतादिः पंच तत्वों के आधार

30. निधिरव्ययः अविनाशी निधि

31. सम्भवः अपनी इच्छा से उत्पन्न होने वाले

32. भावनः समस्त भोक्ताओं के फलों को उत्पन्न करने वाले

33. भर्ता समस्त संसार का पालन करने वाले

34. प्रभवः पंच महाभूतों को उत्पन्न करने वाले

35. प्रभुः सर्वशक्तिमान भगवान्

36. ईश्वरः जो बिना किसी के सहायता के कुछ भी कर पाए

37. स्वयम्भूः जो सबके ऊपर है और स्वयं होते हैं

38. शम्भुः भक्तों के लिए सुख की भावना की उत्पत्ति करने वाले हैं

39. आदित्यः अदिति के पुत्र वामन.

40. पुष्कराक्षः जिनके नेत्र पुष्कर कमल. समान हैं

41. महास्वनः अति महान स्वर या घोष वाले

42. अनादि-निधनः जिनका आदि और निधन दोनों ही नहीं हैं

43. धाता शेषनाग के रूप में विश्व को धारण करने वाले

44. विधाता कर्म और उसके फलों की रचना करने वाले

45. धातुरुत्तमः अनंतादि अथवा सबको धारण करने वाले हैं

46. अप्रमेयः जिन्हे जाना न जा सके

47. हृषीकेशः इन्द्रियों के स्वामी

48. पद्मनाभः जिसकी नाभि में जगत का कारण रूप पद्म स्थित है

49. अमरप्रभुः देवता जो अमर हैं उनके स्वामी

50. विश्वकर्मा विश्व जिसका कर्म अर्थात क्रिया है

51. मनुः मनन करने वाले

52. त्वष्टा संहार के समय सब प्राणियों को क्षीण करने वाले

53. स्थविष्ठः अतिशय स्थूल

54. स्थविरो ध्रुवः प्राचीन एवं स्थिर

55. अग्राह्यः जो कर्मेन्द्रियों द्वारा ग्रहण नहीं किये जा सकते

56. शाश्वतः जो सब काल में हो

57. कृष्णः जिसका वर्ण श्याम हो

58. लोहिताक्षः जिनके नेत्र लाल हों

59. प्रतर्दनः जो प्रलयकाल में प्राणियों का संहार करते हैं

60. प्रभूतस् जो ज्ञान, ऐश्वर्य आदि गुणों से संपन्न हैं

61. त्रिकाकुब्धाम ऊपर, नीचे और मध्य तीनो दिशाओं के धाम हैं

62. पवित्रम् जो पवित्र करे

63. मंगलं-परम् जो सबसे उत्तम है और समस्त अशुभों को दूर करता है

64. ईशानः सर्वभूतों के नियंता

65. प्राणः जो सदा जीवित है

67. ज्येष्ठः सबसे अधिक वृद्ध या या बड़ा

68. श्रेष्ठः सबसे प्रशंसनीय

69. प्रजापतिः ईश्वररूप से सब प्रजाओं के पति

70. हिरण्यगर्भः ब्रह्माण्डरूप अंडे के भीतर व्याप्त होने वाले

71. भूगर्भः पृश्वी जिनके गर्भ में स्थित है

72. माधवः माँ अर्थात लक्ष्मी के धव अर्थात पति

73. मधुसूदनः मधु नामक दैत्य को मारने वाले

74. ईश्वरः सर्वशक्तिमान

75. विक्रमः शूरवीर

76. धन्वी धनुष धारण करने वाला

77. मेधावी बहुत से ग्रंथों को धारण करने के सामर्थ्य वाला

78. विक्रमः जगत को लांघ जाने वाला या गरुड़ पक्षी द्वारा गमन करने वाला

79. क्रमः क्रमण लांघना, दौड़ना . करने वाला या क्रम विस्तार. वाला

80. अनुत्तमः जिससे उत्तम और कोई न हो

81. दुराधर्षः जो दैत्यादिकों से दबाया न जा सके

82. कृतज्ञः प्राणियों के किये हुए पाप पुण्यों को जानने वाले

83. कृतिः सर्वात्मक

84. आत्मवान् अपनी ही महिमा में स्थित होने वाले

85. सुरेशः देवताओं के ईश

86. शरणम् दीनों का दुःख दूर करने वाले

87. शर्म परमानन्दस्वरूप

88. विश्वरेताः विश्व के कारण

89. प्रजाभवः जिनसे सम्पूर्ण प्रजा उत्पन्न होती है

90. अहः प्रकाशस्वरूप

91. संवत्सरः कालस्वरूप से स्थित हुए

92. व्यालः व्याल सर्प. के समान ग्रहण करने में न आ सकने वाले

93. प्रत्ययः प्रतीति रूप होने के कारण

94. सर्वदर्शनः सर्वरूप होने के कारण सभी के नेत्र हैं

95. अजः अजन्मा

96. सर्वेश्वरः ईश्वरों का भी ईश्वर

97. सिद्धः नित्य सिद्ध

98. सिद्धिः सबसे श्रेष्ठ

99. सर्वादिः सर्व भूतों के आदि कारण

100. अच्युतः अपनी स्वरुप शक्ति से च्युत न होने वाले

101. वृषाकपिः वृष धर्म. रूप और कपि वराह. रूप

102. अमेयात्मा जिनके आत्मा का माप परिच्छेद न किया जा सके

103. सर्वयोगविनिसृतः सम्पूर्ण संबंधों से रहित

104. वसुः जो सब भूतों में बसते हैं और जिनमे सब भूत बसते हैं

105. वसुमनाः जिनका मन प्रशस्त श्रेष्ठ. है

106. सत्यः सत्य स्वरुप

107. समात्मा जो राग द्वेषादि से दूर हैं

108. सम्मितः समस्त पदार्थों से परिच्छिन्न

109. समः सदा समस्त विकारों से रहित

110. अमोघः जो स्मरण किये जाने पर सदा फल देते हैं

111. पुण्डरीकाक्षः हृदयस्थ कमल में व्याप्त होते हैं

112. वृषकर्मा जिनके कर्म धर्मरूप हैं

113. वृषाकृतिः जिन्होंने धर्म के लिए ही शरीर धारण किया है

114. रुद्रः दुःख को दूर भगाने वाले

115. बहुशिरः बहुत से सिरों वाले

116. बभ्रुः लोकों का भरण करने वाले

117. विश्वयोनिः विश्व के कारण

118. शुचिश्रवाः जिनके नाम सुनने योग्य हैं

119. अमृतः जिनका मृत अर्थात मरण नहीं होता

120. शाश्वतः-स्थाणुः शाश्वत नित्य. और स्थाणु स्थिर.

121. वरारोहः जिनका आरोह गोद. वर श्रेष्ठ. है

122. महातपः जिनका तप महान है

123. सर्वगः जो सर्वत्र व्याप्त है

124. सर्वविद्भानुः जो सर्ववित् है और भानु भी है

125. विष्वक्सेनः जिनके सामने कोई सेना नहीं टिक सकती

126. जनार्दनः दुष्टजनों को नरकादि लोकों में भेजने वाले

127. वेदः वेद रूप

128. वेदविद् वेद जानने वाले

129. अव्यंगः जो किसी प्रकार ज्ञान से अधूरा न हो

130. वेदांगः वेद जिनके अंगरूप हैं

131. वेदविद् वेदों को विचारने वाले

132. कविः सबको देखने वाले

133. लोकाध्यक्षः समस्त लोकों का निरीक्षण करने वाले

134. सुराध्यक्षः सुरों देवताओं. के अध्यक्ष

135. धर्माध्यक्षः धर्म और अधर्म को साक्षात देखने वाले

136 कृताकृतः कार्य रूप से कृत और कारणरूप से अकृत

137 चतुरात्मा चार पृथक विभूतियों वाले

138 चतुर्व्यूहः चार व्यूहों वाले

139 चतुर्दंष्ट्रः चार दाढ़ों या सींगों वाले

140 चतुर्भुजः चार भुजाओं वाले

141 भ्राजिष्णुः एकरस प्रकाशस्वरूप

142 भोजनम् प्रकृति रूप भोज्य माया

143 भोक्ता पुरुष रूप से प्रकृति को भोगने वाले

144 सहिष्णुः दैत्यों को भी सहन करने वाले

145 जगदादिजः जगत के आदि में उत्पन्न होने वाले

146 अनघः जिनमे अघ पाप. न हो

147 विजयः ज्ञान, वैराग्य व् ऐश्वर्य से विश्व को जीतने वाले

148 जेता समस्त भूतों को जीतने वाले

149 विश्वयोनिः विश्व और योनि दोनों वही हैं

150 पुनर्वसुः बार बार शरीरों में बसने वाले

151 उपेन्द्रः अनुजरूप से इंद्र के पास रहने वाले

152 वामनः भली प्रकार भजने योग्य हैं

153 प्रांशुः तीनो लोकों को लांघने के कारण प्रांशु ऊंचे. हो गए

154 अमोघः जिनकी चेष्टा मोघ व्यर्थ. नहीं होती

155 शुचिः स्मरण करने वालों को पवित्र करने वाले

156 ऊर्जितः अत्यंत बलशाली

157 अतीन्द्रः जो बल और ऐश्वर्य में इंद्र से भी आगे हो

158 संग्रहः प्रलय के समय सबका संग्रह करने वाले

159 सर्गः जगत रूप और जगत का कारण

160 धृतात्मा अपने स्वरुप को एक रूप से धारण करने वाले

161 नियमः प्रजा को नियमित करने वाले

162 यमः अन्तः करण में स्थित होकर नियमन करने वाले

163 वेद्यः कल्याण की इच्छा वालों द्वारा जानने योग्य

164 वैद्यः सब विद्याओं के जानने वाले

165 सदायोगी सदा प्रत्यक्ष रूप होने के कारण

166 वीरहा धर्म की रक्षा के लिए असुर योद्धाओं को मारते हैं

167 माधवः विद्या के पति

168 मधुः मधु शहद. के समान प्रसन्नता उत्पन्न करने वाले

169 अतीन्द्रियः इन्द्रियों से परे

170 महामायः मायावियों के भी स्वामी

171 महोत्साहः जगत की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के लिए तत्पर रहने वाले

172 महाबलः सर्वशक्तिमान

173 महाबुद्धिः सर्वबुद्धिमान

174 महावीर्यः संसार के उत्पत्ति की कारणरूप

175 महाशक्तिः अति महान शक्ति और सामर्थ्य के स्वामी

176 महाद्युतिः जिनकी बाह्य और अंतर दयुति ज्योति. महान है

177 अनिर्देश्यवपुः जिसे बताया न जा सके

178 श्रीमान् जिनमे श्री है

179 अमेयात्मा जिनकी आत्मा समस्त प्राणियों से अमेयअनुमान न की जा सकने योग्य. है

180 महाद्रिधृक् मंदराचल और गोवर्धन पर्वतों को धारण करने वाले

181 महेष्वासः जिनका धनुष महान है

182 महीभर्ता प्रलयकालीन जल में डूबी हुई पृथ्वी को धारण करने वाले

183 श्रीनिवासः श्री के निवास स्थान

184 सतां गतिः संतजनों के पुरुषार्थसाधन हेतु

185 अनिरुद्धः प्रादुर्भाव के समय किसी से निरुद्ध न होने वाले

186 सुरानन्दः सुरों देवताओं. को आनंदित करने वाले

187 गोविन्दः वाणी गौ. को प्राप्त कराने वाले

188 गोविदां-पतिः गौ वाणी. पति

189 मरीचिः तेजस्वियों के परम तेज

190 दमनः राक्षसों का दमन करने वाले

191 हंसः संसार भय को नष्ट करने वाले

192 सुपर्णः धर्म और अधर्मरूप सुन्दर पंखों वाले

193 भुजगोत्तमः भुजाओं से चलने वालों में उत्तम

194 हिरण्यनाभः हिरण्य स्वर्ण. के समान नाभि वाले

195 सुतपाः सुन्दर तप करने वाले

196 पद्मनाभः पद्म के समान सुन्दर नाभि वाले

197 प्रजापतिः प्रजाओं के पिता

198 अमृत्युः जिसकी मृत्यु न हो

199 सर्वदृक् प्राणियों के सब कर्म-अकर्मादि को देखने वाले

200 सिंहः हनन करने वाले हैं

201 सन्धाता मनुष्यों को उनके कर्मों के फल देते हैं

202 सन्धिमान् फलों के भोगनेवाले हैं

203 स्थिरः सदा एकरूप हैं

204 अजः भक्तों के ह्रदय में रहने वाले और असुरों का संहार करने वाले

205 दुर्मषणः दानवादिकों से सहन नहीं किये जा सकते

206 शास्ता श्रुति स्मृति से सबका अनुशासन करते हैं

207 विश्रुतात्मा सत्यज्ञानादि रूप आत्मा का विशेषरूप से श्रवण करने वाले

208 सुरारिहा सुरों देवताओं. के शत्रुओं को मारने वाले

209 गुरुः सब विद्याओं के उपदेष्टा और सबके जन्मदाता

210 गुरुतमः ब्रह्मा आदिको भी ब्रह्मविद्या प्रदान करने वाले

211 धाम परम ज्योति

212 सत्यः सत्य-भाषणरूप, धर्मस्वरूप

213 सत्यपराक्रमः जिनका पराक्रम सत्य अर्थात अमोघ है

214 निमिषः जिनके नेत्र योगनिद्रा में मूंदे हुए हैं

215 अनिमिषः मत्स्यरूप या आत्मारूप

216 स्रग्वी वैजयंती माला धारण करने वाले

217 वाचस्पतिः-उदारधीः विद्या के पति,सर्व पदार्थों को प्रत्यक्ष करने वाले

218 अग्रणीः मुमुक्षुओं को उत्तम पद पर ले जाने वाले

219 ग्रामणीः भूतग्राम का नेतृत्व करने वाले

220 श्रीमान् जिनकी श्री अर्थात कांति सबसे बढ़ी चढ़ी है

221 न्यायः न्यायस्वरूप

222 नेता जगतरूप यन्त्र को चलाने वाले

223 समीरणः श्वासरूप से प्राणियों से चेष्टा करवाने वाले

224 सहस्रमूर्धा सहस्र मूर्धा सिर. वाले

225 विश्वात्मा विश्व के आत्मा

226 सहस्राक्षः सहस्र आँखों या इन्द्रियों वाले

227 सहस्रपात् सहस्र पाद चरण. वाले

228 आवर्तनः संसार चक्र का आवर्तन करने वाले हैं

229 निवृत्तात्मा संसार बंधन से निवृत्त छूटे हुए. हैं

230 संवृतः आच्छादन करनेवाली अविद्या से संवृत्त ढके हुए. हैं

231 संप्रमर्दनः अपने रूद्र और काल रूपों से सबका मर्दन करने वाले हैं

232 अहः संवर्तकः दिन के प्रवर्तक हैं

233 वह्निः हविका वहन करने वाले हैं

234 अनिलः अनादि

235 धरणीधरः वराहरूप से पृथ्वी को धारण करने वाले हैं

236 सुप्रसादः जिनकी कृपा अति सुन्दर है

237 प्रसन्नात्मा जिनका अन्तः करण रज और तम से दूषित नहीं है

238 विश्वधृक् विश्व को धारण करने वाले हैं

239 विश्वभुक् विश्व का पालन करने वाले हैं

240 विभुः हिरण्यगर्भादिरूप से विविध होते हैं

241 सत्कर्ता सत्कार करते अर्थात पूजते हैं

242 सत्कृतः पूजितों से भी पूजित

243 साधुः साध्यमात्र के साधक हैं

244 जह्नुः अज्ञानियों को त्यागते और भक्तो को परमपद पर ले जाने वाले

245 नारायणः नर से उत्पन्न हुए तत्व नार हैं जो भगवान् के अयन घर. थे

246 नरः नयन कर्ता है इसलिए सनातन परमात्मा नर कहलाता है

247 असंख्येयः जिनमे संख्या अर्थात नाम रूप भेदादि नहीं हो

248 अप्रमेयात्मा जिनका आत्मा अर्थात स्वरुप अप्रमेय है

249 विशिष्टः जो सबसे अतिशय बढे चढ़े. हैं

250 शिष्टकृत् जो शासन करते हैं

251 शुचिः जो मलहीन है

252 सिद्धार्थः जिनका अर्थ सिद्ध हो

253 सिद्धसंकल्पः जिनका संकल्प सिद्ध हो

254 सिद्धिदः कर्ताओं को अधिकारानुसार फल देने वाले

255 सिद्धिसाधनः सिद्धि के साधक

256 वृषाही जिनमे वृषधर्म. जोकि अहः दिन. है वो स्थित है

257 वृषभः जो भक्तों के लिए इच्छित वस्तुओं की वर्षा करते हैं

258 विष्णुः सब और व्याप्त रहने वाले

259 वृषपर्वा धर्म की तरफ जाने वाली सीढ़ी

260 वृषोदरः जिनका उदर मानो प्रजा की वर्षा करता है

261 वर्धनः बढ़ाने और पालना करने वाले

262 वर्धमानः जो प्रपंचरूप से बढ़ते हैं

263 विविक्तः बढ़ते हुए भी पृथक ही रहते हैं

264 श्रुतिसागरः जिनमे समुद्र के सामान श्रुतियाँ रखी हुई हैं

265 सुभुजः जिनकी जगत की रक्षा करने वाली भुजाएं अति सुन्दर हैं

266 दुर्धरः जो मुमुक्षुओं के ह्रदय में अति कठिनता से धारण किये जाते हैं

267 वाग्मी जिनसे वेदमयी वाणी का प्रादुर्भाव हुआ है

268 महेन्द्रः ईश्वरों के भी इश्वर

269 वसुदः वसु अर्थात धन देते हैं

270 वसुः दिया जाने वाला वसु धन. भी वही हैं

271 नैकरूपः जिनके अनेक रूप हों

272 बृहद्रूपः जिनके वराह आदि बृहत् बड़े-बड़े. रूप हैं

273 शिपिविष्टः जो शिपि पशु. में यञरूप में स्थित होते हैं

274 प्रकाशनः सबको प्रकाशित करने वाले

275 ओजस्तेजोद्युतिधरः ओज, प्राण और बल को धारण करने वाले

276 प्रकाशात्मा जिनकी आत्मा प्रकाश स्वरुप है

277 प्रतापनः जो अपनी किरणों से धरती को तप्त करते हैं

278 ऋद्धः जो धर्म, ज्ञान और वैराग्य से संपन्न हैं

279 स्पष्टाक्षरः जिनका ओंकाररूप अक्षर स्पष्ट है

280 मन्त्रः मन्त्रों से जानने योग्य

281 चन्द्रांशुः मनुष्यों को चन्द्रमा की किरणों के समान आल्हादित करने वाले

282 भास्करद्युतिः सूर्य के तेज के समान धर्म वाले

283 अमृतांशोद्भवः समुद्र मंथन के समय जिनके कारण चन्द्रमा की उत्पत्ति हुई

284 भानुः भासित होने वाले

285 शशबिन्दुः चन्द्रमा के समान प्रजा का पालन करने वाले

286 सुरेश्वरः देवताओं के इश्वर

287 औषधम् संसार रोग के औषध

288 जगतः सेतुः लोकों के पारस्परिक असंभेद के लिए इनको धारण करने वाला सेतु

289 सत्यधर्मपराक्रमःजिनके धर्म-ज्ञान और पराक्रमादि गुण सत्य है

290 भूतभव्यभवन्नाथः भूत, भव्य भविष्य. और भवत वर्तमान. प्राणियों के नाथ है

291 पवनः पवित्र करने वाले हैं

292 पावनः चलाने वाले हैं

293 अनलः प्राणों को आत्मभाव से ग्रहण करने वाले हैं

294 कामहा मोक्षकामी भक्तों और हिंसकों की कामनाओं को नष्ट करने वाले

295 कामकृत् सात्विक भक्तों की कामनाओं को पूरा करने वाले हैं

296 कान्तः अत्यंत रूपवान हैं

297 कामः पुरुषार्थ की आकांक्षा वालों से कामना किये जाते हैं

298 कामप्रदः भक्तों की कामनाओं को पूरा करने वाले हैं

299 प्रभुः प्रकर्ष

300 युगादिकृत् युगादि का आरम्भ करने वाले हैं

301 युगावर्तः सतयुग आदि युगों का आवर्तन करने वाले हैं

302 नैकमायः अनेकों मायाओं को धारण करने वाले हैं

303 महाशनः कल्पांत में संसार रुपी अशन भोजन. को ग्रसने वाले

304 अदृश्यः समस्त ज्ञानेन्द्रियों के अविषय हैं

305 व्यक्तरूपः स्थूल रूप से जिनका स्वरुप व्यक्त है

306 सहस्रजित् युद्ध में सहस्रों देवशत्रुओं को जीतने वाले

307 अनन्तजित् अचिन्त्य शक्ति से समस्त भूतों को जीतने वाले

308 इष्टः यज्ञ द्वारा पूजे जाने वाले

309 विशिष्टः अन्तर्यामी

310 शिष्टेष्टः विद्वानों के ईष्ट

311 शिखण्डी शिखण्ड मयूरपिच्छ. जिनका शिरोभूषण है

312 नहुषः भूतों को माया से बाँधने वाले

313 वृषः कामनाओं की वर्षा करने वाले

314 क्रोधहा साधुओं का क्रोध नष्ट करने वाले

315 क्रोधकृत्कर्ता क्रोध करने वाले दैत्यादिकों के कर्तन करने वाले हैं

316 विश्वबाहुः जिनके बाहु सब और हैं

317 महीधरः महि पृथ्वी. को धारण करते हैं

318 अच्युतः छः भावविकारों से रहित रहने वाले

319 प्रथितः जगत की उत्पत्ति आदि कर्मो से प्रसिद्ध

320 प्राणः हिरण्यगर्भ रूप से प्रजा को जीवन देने वाले

321 प्राणदः देवताओं और दैत्यों को प्राण देने या नष्ट करने वाले हैं

322 वासवानुजः वासव इंद्र. के अनुज वामन अवतार.

323 अपां-निधिः जिसमे अप जल. एकत्रित रहता है वो सागर हैं

324 अधिष्ठानम् जिनमे सब भूत स्थित हैं

325 अप्रमत्तः कर्मानुसार फल देते हुए कभी चूकते नहीं हैं

326 प्रतिष्ठितः जो अपनी महिमा में स्थित हैं

327 स्कन्दः स्कंदन करने वाले हैं

328 स्कन्दधरः स्कन्द अर्थात धर्ममार्ग को धारण करने वाले हैं

329 धूर्यः समस्त भूतों के जन्मादिरूप धुर बोझे. को धारण करने वाले हैं

330 वरदः इच्छित वर देने वाले हैं

331 वायुवाहनः आवह आदि सात वायुओं को चलाने वाले हैं

332 वासुदेवः जो वासु हैं और देव भी हैं

333 बृहद्भानुः अति बृहत् किरणों से संसार को प्रकाशित करने वाले

334 आदिदेवः सबके आदि हैं और देव भी हैं

335 पुरन्दरः देवशत्रुओं के पूरों नगर.का ध्वंस करने वाले हैं

336 अशोकः शोकादि छः उर्मियों से रहित हैं

337 तारणः संसार सागर से तारने वाले हैं

338 तारः भय से तारने वाले हैं

339 शूरः पुरुषार्थ करने वाले हैं

340 शौरिः वासुदेव की संतान

341 जनेश्वरः जन अर्थात जीवों के इश्वर

342 अनुकूलः सबके आत्मारूप हैं

343 शतावर्तः जिनके धर्म रक्षा के लिए सैंकड़ों अवतार हुए हैं

344 पद्मी जिनके हाथ में पद्म है

345 पद्मनिभेक्षणः जिनके नेत्र पद्म समान हैं

346 पद्मनाभः हृदयरूप पद्म की नाभि के बीच में स्थित हैं

347 अरविन्दाक्षः जिनकी आँख अरविन्द कमल. के समान है

348 पद्मगर्भः हृदयरूप पद्म में मध्य में उपासना करने वाले हैं

349 शरीरभृत् अपनी माया से शरीर धारण करने वाले हैं

350 महर्द्धिः जिनकी विभूति महान है

351 ऋद्धः प्रपंचरूप

352 वृद्धात्मा जिनकी देह वृद्ध या पुरातन है

353 महाक्षः जिनकी अनेको महान आँखें अक्षि. हैं

354 गरुडध्वजः जिनकी ध्वजा गरुड़ के चिन्ह वाली है

355 अतुलः जिनकी कोई तुलना नहीं है

356 शरभः जो नाशवान शरीर में प्रयगात्मा रूप से भासते हैं

357 भीमः जिनसे सब डरते हैं

358 समयज्ञः समस्त भूतों में जो समभाव रखते हैं

359 हविर्हरिः यज्ञों में हवि का भाग हरण करते हैं

360 सर्वलक्षणलक्षण्यः परमार्थस्वरूप

361 लक्ष्मीवान् जिनके वक्ष स्थल में लक्ष्मी जी निवास करती हैं

362 समितिञ्जयः समिति अर्थात युद्ध को जीतते हैं

363 विक्षरः जिनका क्षर अर्थात नाश नहीं है

364 रोहितः अपनी इच्छा से रोहितवर्ण मूर्ति का स्वरुप धारण करने वाले

365 मार्गः जिनसे परमानंद प्राप्त होता है

366 हेतुः संसार के निमित्त और उपादान कारण हैं

367 दामोदरः दाम लोकों का नाम है जिसके वे उदर में हैं

368 सहः सबको सहन करने वाले हैं

369 महीधरः पर्वतरूप होकर मही को धारण करते हैं

370 महाभागः हर यज्ञ में जिन्हे सबसे बड़ा भाग मिले

371 वेगवान् तीव्र गति वाले हैं

372 अमिताशनः संहार के समय सारे विश्व को खा जाने वाले हैं

373 उद्भवः भव यानी संसार से ऊपर हैं

374 क्षोभणः जगत की उत्पत्ति के समय प्रकृति और पुरुष में प्रविष्ट होकर क्षुब्ध करने वाले

375 देवः जो स्तुत्य पुरुषों से स्तवन किये जाते हैं और सर्वत्र जाते हैं

376 श्रीगर्भः जिनके उदर में संसार रुपी श्री स्थित है

377 परमेश्वरः जो परम है और ईशनशील हैं

378 करणम् संसार की उत्पत्ति के सबसे बड़े साधन हैं

379 कारणम् जगत के उपादान और निमित्त

380 कर्ता स्वतन्त्र

381 विकर्ता विचित्र भुवनों की रचना करने वाले हैं

382 गहनः जिनका स्वरुप, सामर्थ्य या कृत्य नहीं जाना जा सकता

383 गुहः अपनी माया से स्वरुप को ढक लेने वाले

384 व्यवसायः ज्ञानमात्रस्वरूप

385 व्यवस्थानः जिनमे सबकी व्यवस्था है

386 संस्थानः परम सत्ता

387 स्थानदः ध्रुवादिकों को उनके कर्मों के अनुसार स्थान देते हैं

388 ध्रुवः अविनाशी

389 परर्धिः जिनकी विभूति श्रेष्ठ है

390 परमस्पष्टः परम और स्पष्ट हैं

391 तुष्टः परमानन्दस्वरूप

392 पुष्टः सर्वत्र परिपूर्ण

393 शुभेक्षणः जिनका दर्शन सर्वदा शुभ है

394 रामः अपनी इच्छा से रमणीय शरीर धारण करने वाले

395 विरामः जिनमे प्राणियों का विराम अंत. होता है

396 विरजः विषय सेवन में जिनका राग नहीं रहा है

397 मार्गः जिन्हे जानकार मुमुक्षुजन अमर हो जाते हैं

398 नेयः ज्ञान से जीव को परमात्वभाव की तरफ ले जाने वाले

399 नयः नेता

400 अनयः जिनका कोई और नेता नहीं है

401 वीरः विक्रमशाली

402 शक्तिमतां श्रेष्ठः सभी शक्तिमानों में श्रेष्ठ

403 धर्मः समस्त भूतों को धारण करने वाले

404 धर्मविदुत्तमः श्रुतियाँ और स्मृतियाँ जिनकी आज्ञास्वरूप है

405 वैकुण्ठः जगत के आरम्भ में बिखरे हुए भूतों को परस्पर मिलाकर उनकी गति रोकने वाले

406 पुरुषः सबसे पहले होने वाले

407 प्राणः प्राणवायुरूप होकर चेष्टा करने वाले हैं

408 प्राणदः प्रलय के समय प्राणियों के प्राणों का खंडन करते हैं

409 प्रणवः जिन्हे वेद प्रणाम करते हैं

410 पृथुः प्रपंचरूप से विस्तृत हैं

411 हिरण्यगर्भः ब्रह्मा की उत्पत्ति के कारण

412 शत्रुघ्नः देवताओं के शत्रुओं को मारने वाले हैं

413 व्याप्तः सब कार्यों को व्याप्त करने वाले हैं

414 वायुः गंध वाले हैं

415 अधोक्षजः जो कभी अपने स्वरुप से नीचे न हो

416 ऋतुः ऋतु शब्द द्वारा कालरूप से लक्षित होते हैं

417 सुदर्शनः उनके नेत्र अति सुन्दर हैं

418 कालः सबकी गणना करने वाले हैं

419 परमेष्ठी हृदयाकाश के भीतर परम महिमा में स्थित रहने के स्वभाव वाले

420 परिग्रहः भक्तों के अर्पण किये जाने वाले पुष्पादि को ग्रहण करने वाले

421 उग्रः जिनके भय से सूर्य भी निकलता है

422 संवत्सरः जिनमे सब भूत बसते हैं

423 दक्षः जो सब कार्य बड़ी शीघ्रता से करते हैं

424 विश्रामः मोक्ष देने वाले हैं

425 विश्वदक्षिणः जो समस्त कार्यों में कुशल हैं

426 विस्तारः जिनमे समस्त लोक विस्तार पाते हैं

427 स्थावरस्स्थाणुः स्थावर और स्थाणु हैं

428 प्रमाणम् संवितस्वरूप

429 बीजमव्ययम् बिना अन्यथाभाव के ही संसार के कारण हैं

430 अर्थः सबसे प्रार्थना किये जाने वाले हैं

431 अनर्थः जिनका कोई प्रयोजन नहीं है

432 महाकोशः जिन्हे महान कोष ढकने वाले हैं

433 महाभोगः जिनका सुखरूप महान भोग है

434 महाधनः जिनका भोगसाधनरूप महान धन है

435 अनिर्विण्णः जिन्हे कोई निर्वेद उदासीनता. नहीं है

436 स्थविष्ठः वैराजरूप से स्थित होने वाले हैं

437 अभूः अजन्मा

438 धर्मयूपः धर्म स्वरुप यूप में जिन्हे बाँधा जाता है

439 महामखः जिनको अर्पित किये हुए मख यज्ञ. महान हो जाते हैं

440 नक्षत्रनेमिः सम्पूर्ण नक्षत्रमण्डल के केंद्र हैं

441 नक्षत्री चन्द्ररूप

442 क्षमः समस्त कार्यों में समर्थ

443 क्षामः जो समस्त विकारों के क्षीण हो जाने पर आत्मभाव से स्थित रहते हैं

444 समीहनः सृष्टि आदि के लिए सम्यक चेष्टा करते हैं

445 यज्ञः सर्वयज्ञस्वरूप

446 इज्यः जो पूज्य हैं

447 महेज्यः मोक्षरूप फल देने वाले सबसे अधिक पूजनीय

448 क्रतुः तद्रूप

449 सत्रम् जो विधिरूप धर्म को प्राप्त करता है

450 सतां-गतिः जिनके अलावा कोई और गति नहीं है

451 सर्वदर्शी जो प्राणियों के सम्पूर्ण कर्मों को देखते हैं

452 विमुक्तात्मा स्वभाव से ही जिनकी आत्मा मुक्त है

453 सर्वज्ञः जो सर्व है और ज्ञानरूप है

454 ज्ञानमुत्तमम् जो प्रकृष्ट, अजन्य, और सबसे बड़ा साधक ज्ञान है

455 सुव्रतः जिन्होंने अशुभ व्रत लिया है

456 सुमुखः जिनका मुख सुन्दर है

457 सूक्ष्मः शब्दादि स्थूल कारणों से रहित हैं

458 सुघोषः मेघ के समान गंभीर घोष वाले हैं

459 सुखदः सदाचारियों को सुख देने वाले हैं

460 सुहृत् बिना प्रत्युपकार की इच्छा के ही उपकार करने वाले हैं

461 मनोहरः मन का हरण करने वाले हैं

462 जितक्रोधः क्रोध को जीतने वाले

463 वीरबाहुः अति विक्रमशालिनी बाहु के स्वामी

464 विदारणः अधार्मिकों को विदीर्ण करने वाले हैं

465 स्वापनः जीवों को माया से आत्मज्ञानरूप जाग्रति से रहित करने वाले हैं

466 स्ववशः जगत की उत्पत्ति, स्थिति और लय के कारण हैं

467 व्यापी सर्वव्यापी

468 नैकात्मा जो विभिन्न विभूतियों के द्वारा नाना प्रकार से स्थित हैं

469 नैककर्मकृत् जो संसार की उत्पत्ति, उन्नति और विपत्ति आदि अनेक कर्म करते हैं

470 वत्सरः जिनमे सब कुछ बसा हुआ है

471 वत्सलः भक्तों के स्नेही

472 वत्सी वत्सों का पालन करने वाले

473 रत्नगर्भः रत्न जिनके गर्भरूप हैं

474 धनेश्वरः जो धनों के स्वामी हैं

475 धर्मगुब् धर्म का गोपनरक्षा. करने वाले हैं

476 धर्मकृत् धर्म की मर्यादा के अनुसार आचरण वाले हैं

477 धर्मी धर्मों को धारण करने वाले हैं

478 सत् सत्यस्वरूप परब्रह्म

479 असत् प्रपंचरूप अपर ब्रह्म

480 क्षरम् सर्व भूत

481 अक्षरम् कूटस्थ

482 अविज्ञाता वासना को न जानने वाला

483 सहस्रांशुः जिनके तेज से प्रज्वल्लित होकर सूर्य तपता है

484 विधाता समस्त भूतों और पर्वतों को धारण करने वाले

485 कृतलक्षणः नित्यसिद्ध चैतन्यस्वरूप

486 गभस्तिनेमिः जो गभस्तियों किरणों. के बीच में सूर्यरूप से स्थित हैं

487 सत्त्वस्थः जो समस्त प्राणियों में स्थित हैं

488 सिंहः जो सिंह के समान पराक्रमी हैं

489 भूतमहेश्वरः भूतों के महान इश्वर हैं

490 आदिदेवः जो सब भूतों का ग्रहण करते हैं और देव भी हैं

491 महादेवः जो अपने महान ज्ञानयोग और ऐश्वर्य से महिमान्वित हैं

492 देवेशः देवों के ईश हैं

493 देवभृद्गुरुः देंताओं के पालक इन्द्र के भी शासक हैं

494 उत्तरः जो संसारबंधन से मुक्त हैं

495 गोपतिः गौओं के पालक

496 गोप्ता समस्त भूतों के पालक और जगत के रक्षक

497 ज्ञानगम्यः जो केवल ज्ञान से ही जाने जाते हैं

498 पुरातनः जो काल से भी पहले रहते हैं

499 शरीरभूतभृत् शरीर की रचना करने वाले भूतों के पालक

500 भोक्ता पालन करने वाले

501 कपीन्द्रः वानरों के स्वामी

502 भूरिदक्षिणः जिनकी बहुत सी दक्षिणाएँ रहती हैं

503 सोमपः जो समस्त यज्ञों में देवतारूप से सोमपान करते हैं

504 अमृतपः आत्मारूप अमृतरस का पान करने वाले

505 सोमः चन्द्रमा सोम. रूप से औषधियों का पोषण करने वाले

506 पुरुजित् पुरु अर्थात बहुतों को जीतने वाले

507 पुरुसत्तमः विश्वरूप अर्थात पुरु और उत्कृष्ट अर्थात सत्तम हैं

508 विनयः दुष्ट प्रजा को विनय अर्थात दंड देने वाले हैं

509 जयः सब भूतों को जीतने वाले हैं

510 सत्यसन्धः जिनकी संधा अर्थात संकल्प सत्य हैं

511 दाशार्हः जो दशार्ह कुल में उत्पन्न हुए

512 सात्त्वतां पतिः सात्वतों वैष्णवों. के स्वामी

513 जीवः क्षेत्रज्ञरूप से प्राण धारण करने वाले

514 विनयितासाक्षी प्रजा की विनयिता को साक्षात देखने वाले

515 मुकुन्दः मुक्ति देने वाले हैं

516 अमितविक्रमः जिनका विक्रम शूरवीरता. अतुलित है

517 अम्भोनिधिः जिनमे अम्भ देवता. रहते हैं

518 अनन्तात्मा जो देश, काल और वस्तु से अपरिच्छिन्न हैं

519 महोदधिशयः जो महोदधि समुद्र. में शयन करते हैं

520 अन्तकः भूतों का अंत करने वाले

521 अजः अजन्मा

522 महार्हः मह पूजा. के योग्य

523 स्वाभाव्यः नित्यसिद्ध होने के कारण स्वभाव से ही उत्पन्न नहीं होते

524 जितामित्रः जिन्होंने शत्रुओं को जीता है

525 प्रमोदनः जो अपने ध्यानमात्र से ध्यानियों को प्रमुदित करते हैं

526 आनन्दः आनंदस्वरूप

527 नन्दनः आनंदित करने वाले हैं

528 नन्दः सब प्रकार की सिद्धियों से संपन्न

529 सत्यधर्मा जिनके धर्म ज्ञानादि गुण सत्य हैं

530 त्रिविक्रमः जिनके तीन विक्रम डग. तीनों लोकों में क्रान्त व्याप्त. हो गए

531 महर्षिः कपिलाचार्यः जो ऋषि रूप से उत्पन्न हुए कपिल हैं

532 कृतज्ञः कृत जगत. और ज्ञ आत्मा. हैं

533 मेदिनीपतिः मेदिनी पृथ्वी. के पति

534 त्रिपदः जिनके तीन पद हैं

535 त्रिदशाध्यक्षः जागृत , स्वप्न और सुषुप्ति इन तीन अवस्थाओं के अध्यक्ष

536 महाशृंगः मत्स्य अवतार

537 कृतान्तकृत् कृत जगत. का अंत करने वाले हैं

538 महावराहः महान हैं और वराह हैं

539 गोविन्दः गो अर्थात वाणी से प्राप्त होने वाले हैं

540 सुषेणः जिनकी पार्षदरूप सुन्दर सेना है

541 कनकांगदी जिनके कनकमय सोने के. अंगदभुजबन्द. हैं

542 गुह्यः गुहा यानि हृदयाकाश में छिपे हुए हैं

543 गभीरः जो गंभीर हैं

544 गहनः कठिनता से प्रवेश किये जाने योग्य हैं

545 गुप्तः जो वाणी और मन के अविषय हैं

546 चक्रगदाधरः मन रुपी चक्र और बुद्धि रुपी गदा को लोक रक्षा हेतु धारण करने वाले

547 वेधाः विधान करने वाले हैं

548 स्वांगः कार्य करने में स्वयं ही अंग हैं

549 अजितः अपने अवतारों में किसी से नहीं जीते गए

550 कृष्णः कृष्णद्वैपायन

551 दृढः जिनके स्वरुप सामर्थ्यादि की कभी च्युति नहीं होती

552 संकर्षणोऽच्युतः जो एक साथ ही आकर्षण करते हैं और पद च्युत नहीं होते

553 वरुणः अपनी किरणों का संवरण करने वाले सूर्य हैं

554 वारुणः वरुण के पुत्र वसिष्ठ या अगस्त्य

555 वृक्षः वृक्ष के समान अचल भाव से स्थित

556 पुष्कराक्षः हृदय कमल में चिंतन किये जाते हैं

557 महामनः सृष्टि,स्थिति और अंत ये तीनों कर्म मन से करने वाले

558 भगवान् सम्पूर्ण ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य जिनमें है

559 भगहा संहार के समय ऐश्वर्यादि का हनन करने वाले हैं

560 आनन्दी सुखस्वरूप

561 वनमाली वैजयंती नाम की वनमाला धारण करने वाले हैं

562 हलायुधः जिनका आयुध शस्त्र. ही हल है

563 आदित्यः अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने वाले

564 ज्योतिरादित्यः सूर्यमण्डलान्तर्गत ज्योति में स्थित

565 सहिष्णुः शीतोष्णादि द्वंद्वों को सहन करने वाले

566 गतिसत्तमः गति हैं और सर्वश्रेष्ठ हैं

567 सुधन्वा जिनका इन्द्रियादिमय सुन्दर शारंग धनुष है

568 खण्डपरशु: जिनका परशु अखंड है

569 दारुणः सन्मार्ग के विरोधियों के लिए दारुण कठोर. हैं

570 द्रविणप्रदः भक्तों को द्रविण इच्छित धन. देने वाले हैं

571 दिवःस्पृक् दिव स्वर्ग. का स्पर्श करने वाले हैं

572 सर्वदृग्व्यासः सम्पूर्ण ज्ञानों का विस्तार करने वाले हैं

573 वाचस्पतिरयोनिजः विद्या के पति और जननी से जन्म न लेने वाले हैं

574 त्रिसामा तीन सामों द्वारा सामगान करने वालों से स्तुति किये जाने वाले हैं

575 सामगः सामगान करने वाले हैं

576 साम सामवेद

577 निर्वाणम् परमानंदस्वरूप ब्रह्म

578 भेषजम् संसार रूप रोग की औषध

579 भृषक् संसाररूप रोग से छुड़ाने वाली विद्या का उपदेश देने वाले हैं

580 संन्यासकृत् मोक्ष के लिए संन्यास की रचना करने वाले हैं

581 समः सन्यासियों को ज्ञान के साधन शम का उपदेश देने वाले

582 शान्तः विषयसुखों में अनासक्त रहने वाले

583 निष्ठा प्रलयकाल में प्राणी सर्वथा जिनमे वास करते हैं

584 शान्तिः सम्पूर्ण अविद्या की निवृत्ति

585 परायणम् पुनरावृत्ति की शंका से रहित परम उत्कृष्ट स्थान हैं

586 शुभांगः सुन्दर शरीर धारण करने वाले हैं

587 शान्तिदः शान्ति देने वाले हैं

588 स्रष्टा आरम्भ में सब भूतों को रचने वाले हैं

589 कुमुदः कु अर्थात पृथ्वी में मुदित होने वाले हैं

590 कुवलेशयः कु अर्थात पृथ्वी के वलन करने से जल कुवल कहलाता है उसमे शयन करने वाले हैं

591 गोहितः गौओं के हितकारी हैं

592 गोपतिः गो अर्थात भूमि के पति हैं

593 गोप्ता जगत के रक्षक हैं

594 वृषभाक्षः वृष अर्थात धर्म जिनकी दृष्टि है

595 वृषप्रियः जिन्हे वृष अर्थात धर्म प्रिय है

596 अनिवर्ती देवासुरसंग्राम से पीछे न हटने वाले हैं

597 निवृतात्मा जिनकी आत्मा स्वभाव से ही विषयों से निवृत्त है

598 संक्षेप्ता संहार के समय विस्तृत जगत को सूक्ष्मरूप से संक्षिप्त करने वाले हैं

599 क्षेमकृत् प्राप्त हुए पदार्थ की रक्षा करने वाले हैं

600 शिवः अपने नामस्मरणमात्र से पवित्र करने वाले हैं

601 श्रीवत्सवक्षाः जिनके वक्षस्थल में श्रीवत्स नामक चिन्ह है

602 श्रीवासः जिनके वक्षस्थल में कभी नष्ट न होने वाली श्री वास करती हैं

603 श्रीपतिः श्री के पति

604 श्रीमतां वरः ब्रह्मादि श्रीमानों में प्रधान हैं

605 श्रीदः भक्तों को श्री देते हैं इसलिए श्रीद हैं

606 श्रीशः जो श्री के ईश हैं

607 श्रीनिवासः जो श्रीमानों में निवास करते हैं

608 श्रीनिधिः जिनमे सम्पूर्ण श्रियां एकत्रित हैं

609 श्रीविभावनः जो समस्त भूतों को विविध प्रकार की श्रियां देते हैं

610 श्रीधरः जिन्होंने श्री को छाती में धारण किया हुआ हैं

611 श्रीकरः भक्तों को श्रीयुक्त करने वाले हैं

612 श्रेयः जिनका स्वरुप कभी न नष्ट होने वाले सुख को प्राप्त कराता है

613 श्रीमान् जिनमे श्रियां हैं

614 लोकत्रयाश्रयः जो तीनों लोकों के आश्रय हैं

615 स्वक्षः जिनकी आँखें कमल के समान सुन्दर हैं

616 स्वङ्गः जिनके अंग सुन्दर हैं

617 शतानन्दः जो परमानंद स्वरुप उपाधि भेद से सैंकड़ों प्रकार के हो जाते हैं

618 नन्दिः परमानन्दस्वरूप

619 ज्योतिर्गणेश्वरः ज्योतिर्गणों के इश्वर

620 विजितात्मा जिन्होंने आत्मा अर्थात मन को जीत लिया है

621 विधेयात्मा जिनका स्वरुप किसीके द्वारा विधिरूप से नहीं कहा जा सकता

622 सत्कीर्तिः जिनकी कीर्ति सत्य है

623 छिन्नसंशयः जिन्हे कोई संशय नहीं है

624 उदीर्णः जो सब प्राणीओं से उत्तीर्ण है

625 सर्वतश्चक्षुः जो अपने चैतन्यरूप से सबको देखते हैं

626 अनीशः जिनका कोई ईश नहीं है

627 शाश्वतः-स्थिरः जो नित्य होने पर भी कभी विकार को प्राप्त नहीं होते

628 भूशयः लंका जाते समय समुद्रतट पर भूमि पर सोये थे

629 भूषणः जो अपने अवतारों से पृथ्वी को भूषित करते रहे हैं

630 भूतिः समस्त विभूतियों के कारण हैं

631 विशोकः जो शोक से परे हैं

632 शोकनाशनः जो स्मरणमात्र से भक्तों का शोक नष्ट कर दे

633 अर्चिष्मान् जिनकी अर्चियों किरणों. से सूर्य, चन्द्रादि अर्चिष्मान हो रहे हैं

634 अर्चितः जो सम्पूर्ण लोकों से अर्चित पूजित. हैं

635 कुम्भः कुम्भघड़े. के समान जिनमे सब वस्तुएं स्थित हैं

636 विशुद्धात्मा तीनों गुणों से अतीत होने के कारण विशुद्ध आत्मा हैं

637 विशोधनः अपने स्मरण मात्र से पापों का नाश करने वाले हैं

638 अनिरुद्धः शत्रुओं द्वारा कभी रोके न जाने वाले

639 अप्रतिरथः जिनका कोई विरुद्ध पक्ष नहीं है

640 प्रद्युम्नः जिनका दयुम्न धन. श्रेष्ठ है

641 अमितविक्रमःजिनका विक्रम अपरिमित है

642 कालनेमीनिहा कालनेमि नामक असुर का हनन करने वाले

643 वीरः जो शूर हैं

644 शौरी जो शूरकुल में उत्पन्न हुए हैं

645 शूरजनेश्वरः इंद्र आदि शूरवीरों के भी शासक

646 त्रिलोकात्मा तीनों लोकों की आत्मा हैं

647 त्रिलोकेशः जिनकी आज्ञा से तीनों लोक अपना कार्य करते हैं

648 केशवः ब्रह्मा,विष्णु और शिव नाम की शक्तियां केश हैं उनसे युक्त होने वाले

649 केशिहा केशी नामक असुर को मारने वाले

650 हरिः अविद्यारूप कारण सहित संसार को हर लेते हैं

651 कामदेवः कामना किये जाते हैं इसलिए काम हैं और देव भी हैं

652 कामपालः कामियों की कामनाओं का पालन करने वाले हैं

653 कामी पूर्णकाम हैं

654 कान्तः परम सुन्दर देह वाले हैं

655 कृतागमः जिन्होंने श्रुति,स्मृति आदि आगमशास्त्र. रचे हैं

656 अनिर्देश्यवपुः जिनका रूप निर्दिष्ट नहीं किया जा सकता

657 विष्णुः जिनकी प्रचुर कांति पृथ्वी और आकाश को व्याप्त करके स्थित है

658 वीरः गति आदि से युक्त हैं

659 अनन्तः देश, काल, वस्तु, सर्वात्मा आदि से अपरिच्छिन्न

660 धनञ्जयः अर्जुन के रूप में जिन्होंने दिग्विजय के समय बहुत सा धन जीता था

661 ब्रह्मण्यः जो तप,वेद,ब्राह्मण और ज्ञान के हितकारी हैं

662 ब्रह्मकृत् तपादि के करने वाले हैं

663 ब्रह्मा ब्रह्मरूप से सबकी रचना करने वाले हैं

664 ब्रहम बड़े तथा बढ़ानेवाले हैं

665 ब्रह्मविवर्धनः तपादि को बढ़ाने वाले हैं

666 ब्रह्मविद् वेद तथा वेद के अर्थ को यथावत जानने वाले हैं

667 ब्राह्मणः ब्राह्मण रूप

668 ब्रह्मी ब्रह्म के शेषभूत जिनमे हैं

669 ब्रह्मज्ञः जो अपने आत्मभूत वेदों को जानते हैं

670 ब्राह्मणप्रियः जो ब्राह्मणों को प्रिय हैं

671 महाक्रमः जिनका डग महान है

672 महाकर्मा जगत की उत्पत्ति जैसे जिनके कर्म महान हैं

673 महातेजा जिनका तेज महान है

674 महोरगः जो महान उरग वासुकि सर्परूप. है

675 महाक्रतुः जो महान क्रतु यज्ञ. है

676 महायज्वा महान हैं और लोक संग्रह के लिए यज्ञानुष्ठान करने से यज्वा भी हैं

677 महायज्ञः महान हैं और यज्ञ हैं

678 महाहविः महान हैं और हवि हैं

679 स्तव्यः जिनकी सब स्तुति करते हैं लेकिन स्वयं किसीकी स्तुति नहीं करते

680 स्तवप्रियः जिनकी सभी स्तुति करते हैं

681 स्तोत्रम् वह गुण कीर्तन हैं जिससे उन्ही की स्तुति की जाती है

682 स्तुतिः स्तवन क्रिया

683 स्तोता सर्वरूप होने के कारण स्तुति करने वाले भी स्वयं हैं

684 रणप्रियः जिन्हे रण प्रिय है

685 पूर्णः जो समस्त कामनाओं और शक्तियों से संपन्न हैं

686 पूरयिता जो केवल पूर्ण ही नहीं हैं बल्कि सबको संपत्ति से पूर्ण करने भी वाले हैं

687 पुण्यः स्मरण मात्र से पापों का क्षय करने वाले हैं

688 पुण्यकीर्तिः जिनकी कीर्ति मनुष्यों को पुण्य प्रदान करने वाली है

689. अनामयः जो व्याधियों से पीड़ित नहीं होते

690. मनोजवः जिनका मन वेग समान तीव्र है

691. तीर्थकरः जो चौदह विद्याओं और वेद विद्याओं के कर्ता तथा वक्ता हैं

692. वसुरेताः स्वर्ण जिनका वीर्य है

693. वसुप्रदः जो खुले हाथ से धन देते हैं

694. वसुप्रदः जो भक्तों को मोक्षरूप उत्कृष्ट फल देते हैं

695. वासुदेवः वासुदेवजी के पुत्र

696. वसुः जिनमे सब भूत बसते हैं

697. वसुमना जो समस्त पदार्थों में सामान्य भाव से बसते हैं

698. हविः जो ब्रह्म को अर्पण किया जाता है

699. सद्गतिः जिनकी गति यानी बुद्धि श्रेष्ठ है

700. सत्कृतिः जिनकी जगत की उत्पत्ति आदि कृति श्रेष्ठ है

701. सत्ता सजातीय, विजातीय भेद से रहित अनुभूति हैं

702. सद्भूतिः जो अबाधित और बहुत प्रकार से भासित हैं

703. सत्परायणः सत्पुरुषों के श्रेष्ठ स्थान हैं

704. शूरसेनः जिनकी सेना शूरवीर है और हनुमान जैसे शूरवीर उनकी सेना में हैं

705. यदुश्रेष्ठः यदुवंशियों में प्रधान हैं

706. सन्निवासः विद्वानों के आश्रय है

707. सुयामुनः जिनके यामुन अर्थात यमुना सम्बन्धी सुन्दर हैं

708. भूतावासः जिनमे सर्व भूत मुख्य रूप से निवास करते हैं

709. वासुदेवः जगत को माया से आच्छादित करते हैं और देव भी हैं

710. सर्वासुनिलयः सम्पूर्ण प्राण जिस जीवरूप आश्रय में लीन हो जाते हैं

711. अनलः जिनकी शक्ति और संपत्ति की समाप्ति नहीं है

712. दर्पहा धर्मविरुद्ध मार्ग में रहने वालों का दर्प नष्ट करते हैं

713. दर्पदः धर्म मार्ग में रहने वालों को दर्पगर्व. देते हैं

714. दृप्तः अपने आत्मारूप अमृत का आखादन करने के कारण नित्य प्रमुदित रहते हैं

715. दुर्धरः जिन्हे बड़ी कठिनता से धारण किया जा सकता है

716. अथापराजितः जो किसी से पराजित नहीं होते

717. विश्वमूर्तिः विश्व जिनकी मूर्ति है

718. महामूर्तिः जिनकी मूर्ति बहुत बड़ी है

719. दीप्तमूर्तिः जिनकी मूर्ति दीप्तमति है

720. अमूर्तिमान् जिनकी कोई कर्मजन्य मूर्ति नहीं है

721. अनेकमूर्तिः अवतारों में लोकों का उपकार करने वाली अनेकों मूर्तियां धारण करते हैं

722. अव्यक्तः जो व्यक्त नहीं होते

723. शतमूर्तिः जिनकी विकल्पजन्य अनेक मूर्तियां हैं

724. शताननः जो सैंकड़ों मुख वाले है

725. एकः जो सजातीय, विजातीय और बाकी भेदों से शून्य हैं

726. नैकः जिनके माया से अनेक रूप हैं

727. सवः वो यज्ञ हैं जिससे सोम निकाला जाता है

728. कः सुखस्वरूप

729. किम् जो विचार करने योग्य है

730. यत् जिनसे सब भूत उत्पन्न होते हैं

731. तत् जो विस्तार करता है

732. पदमनुत्तमम् वह पद हैं और उनसे श्रेष्ठ कोई नहीं है इसलिए अनुत्तम भी हैं

733. लोकबन्धुः जिनमे सब लोक बंधे रहते हैं

734. लोकनाथः जो लोकों से याचना किये जाते हैं और उनपर शासन करते हैं

735. माधवः मधुवंश में उत्पन्न होने वाले हैं

736. भक्तवत्सलः जो भक्तों के प्रति स्नेहयुक्त हैं

737. सुवर्णवर्णः जिनका वर्ण सुवर्ण के समान है

738. हेमांगः जिनका शरीर हेमसुवर्ण. के समान है

739. वरांगः जिनके अंग वर सुन्दर. हैं

740. चन्दनांगदी जो चंदनों और अंगदोंभुजबन्द. से विभूषित हैं

741. वीरहा धर्म की रक्षा के लिए दैत्यवीरों का हनन करने वाले हैं

742. विषमः जिनके समान कोई नहीं है

743. शून्यः जो समस्त विशेषों से रहित होने के कारण शून्य के समान हैं

744. घृताशी जिनकी आशिष घृत यानी विगलित हैं

745. अचलः जो किसी भी तरह से विचलित नहीं होते

746. चलः जो वायुरूप से चलते हैं

747. अमानी जिन्हे अनात्म वस्तुओं में आत्माभिमान नहीं है

748. मानदः जो भक्तों को आदर मान देते हैं

749. मान्यः जो सबके माननीय पूजनीय हैं

750. लोकस्वामी चौदहों लोकों के स्वामी हैं

751. त्रिलोकधृक् तीनों लोकों को धारण करने वाले हैं

752. सुमेधा जिनकी मेधा अर्थात प्रज्ञा सुन्दर है

753. मेधजः मेध अर्थात यज्ञ में उत्पन्न होने वाले हैं

754. धन्यः कृतार्थ हैं

755 सत्यमेधः जिनकी मेधा सत्य है

756. धराधरः जो अपने सम्पूर्ण अंशों से पृथ्वी को धारण करते हैं

757. तेजोवृषः आदित्यरूप से सदा तेज की वर्षा करते हैं

758. द्युतिधरः द्युति को धारण करने वाले हैं

759. सर्वशस्त्रभृतां वरः समस्त शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ

760. प्रग्रहः भक्तों द्वारा समर्पित किये हुए पुष्पादि ग्रहण करने वाले हैं

761. निग्रहः अपने अधीन करके सबका निग्रह करते हैं

762. व्यग्रः जिनका नाश नहीं होता

763. नैकशृंगः चार सींगवाले हैं

764. गदाग्रजः मंत्र से पहले ही प्रकट होते हैं

765. चतुर्मूर्तिः जिनकी चार मूर्तियां हैं

766. चतुर्बाहुः जिनकी चार भुजाएं हैं

767. चतुर्व्यूहः जिनके चार व्यूह हैं

768. चतुर्गतिः जिनके चार आश्रम और चार वर्णों की गति है

769. चतुरात्मा राग द्वेष से रहित जिनका मन चतुर है

770. चतुर्भावः जिनसे धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष पैदा होते हैं

771. चतुर्वेदविद् चारों वेदों को जानने वाले

772. एकपात् जिनका एक पाद है

773. समावर्तः संसार चक्र को भली प्रकार घुमाने वाले हैं

774. निवृत्तात्मा जिनका मन विषयों से निवृत्त है

775. दुर्जयः जो किसी से जीते नहीं जा सकते

776. दुरतिक्रमः जिनकी आज्ञा का उल्लंघन सूर्यादि भी नहीं कर सकते

777. दुर्लभः दुर्लभ भक्ति से प्राप्त होने वाले हैं

778. दुर्गमः कठिनता से जाने जाते हैं

779. दुर्गः कई विघ्नों से आहत हुए पुरुषों द्वारा कठिनता से प्राप्त किये जाते हैं 780. दुरावासः जिन्हे बड़ी कठिनता से चित्त में बसाया जाता है

781. दुरारिहा दुष्ट मार्ग में चलने वालों को मारते हैं

782. शुभांगः सुन्दर अंगों से ध्यान किये जाते हैं

783. लोकसारंगः लोकों के सार हैं

784. सुतन्तुः जिनका तंतु – यह विस्तृत जगत सुन्दर हैं

785. तन्तुवर्धनः उसी तंतु को बढ़ाते या काटते हैं

786. इन्द्रकर्मा जिनका कर्म इंद्र के कर्म के समान ही है

787. महाकर्मा जिनके कर्म महान हैं

788. कृतकर्मा जिन्होंने धर्म रूप कर्म किया है

789. कृतागमः जिन्होंने वेदरूप आगम बनाया है

790. उद्भवः जिनका जन्म नहीं होता

791. सुन्दरः विश्व से बढ़कर सौभाग्यशाली

792. सुन्दः शुभ उंदन आर्द्रभाव. करते हैं

793. रत्ननाभः जिनकी नाभि रत्न के समान सुन्दर है

794. सुलोचनः जिनके लोचन सुन्दर हैं

795. अर्कः ब्रह्मा आदि पूजनीयों के भी पूजनीय हैं

796. वाजसनः याचकों को वाजअन्न. देते हैं

797. शृंगी प्रलय समुद्र में सींगवाले मत्स्यविशेष का रूप धारण करने वाले हैं

798. जयन्तः शत्रुओं को अतिशय से जीतने वाले हैं

799. सर्वविज्जयी जो सर्ववित हैं और जयी हैं

800. सुवर्णबिन्दुः जिनके अवयव सुवर्ण के समान हैं

801. अक्षोभ्यः जो राग द्वेषादि और देवशत्रुओं से क्षोभित नहीं होते

802. सर्ववागीश्वरेश्वरः ब्रह्मादि समस्त वागीश्वरों के भी इश्वर हैं

803. महाहृदः एक बड़े सरोवर समान हैं

804. महागर्तः जिनकी माया गर्त गड्ढे. के समान दुस्तर है

805. महाभूतः तीनों काल से अनवच्छिन्न विभाग रहित. स्वरुप हैं

806. महानिधिः जो महान हैं और निधि भी हैं

807. कुमुदः कु पृथ्वी. को उसका भार उतारते हुए मोदित करते हैं

808. कुन्दरः कुंद पुष्प के समान शुद्ध फल देते हैं

809. कुन्दः कुंद के समान सुन्दर अंगवाले हैं

810. पर्जन्यः पर्जन्य मेघ. के समान कामनाओं को वर्षा करने वाले हैं

811. पावनः स्मरणमात्र से पवित्र करने वाले हैं

812. अनिलः जो इल प्रेरणा करने वाला. से रहित हैं

813. अमृतांशः अमृत का भोग करने वाले हैं

814. अमृतवपुः जिनका शरीर मरण से रहित है

815. सर्वज्ञः जो सब कुछ जानते हैं

816. सर्वतोमुखः सब ओर नेत्र, शिर और मुख वाले हैं

817. सुलभः केवल समर्पित भक्ति से सुखपूर्वक मिल जाने वाले हैं

818. सुव्रतः जो सुन्दर व्रतभोजन. करते हैं

819. सिद्धः जिनकी सिद्धि दूसरे के अधीन नहीं है

820. शत्रुजित् देवताओं के शत्रुओं को जीतने वाले हैं

821. शत्रुतापनः देवताओं के शत्रुओं को तपानेवाले हैं

822. न्यग्रोधः जो नीचे की ओर उगते हैं और सबके ऊपर विराजमान हैं

823. उदुम्बरः अम्बर से भी ऊपर हैं

824. अश्वत्थः श्व अर्थात कल भी रहनेवाला नहीं है

825. चाणूरान्ध्रनिषूदनः चाणूर नामक अन्ध्र जाति के वीर को मारने वाले हैं

826. सहस्रार्चिः जिनकी सहस्र अर्चियाँ किरणें. हैं

827. सप्तजिह्वः उनकी अग्निरूपी सात जिह्वाएँ हैं

828. सप्तैधाः जिनकी सात ऐधाएँ हैं अर्थात दीप्तियाँ हैं

829. सप्तवाहनः सात घोड़ेसूर्यरूप. जिनके वाहन हैं

830. अमूर्तिः जो मूर्तिहीन हैं

831. अनघः जिनमे अघदुःख. या पाप नहीं है

832. अचिन्त्यः सब प्रमाणों के अविषय हैं

833. भयकृत् भक्तों का भय काटने वाले हैं

834. भयनाशनः धर्म का पालन करने वालों का भय नष्ट करने वाले हैं

835. अणुः जो अत्यंत सूक्ष्म हैं

836. बृहत् जो महान से भी अत्यंत महान हैं

837. कृशः जो अस्थूल हैं

838. स्थूलः जो सर्वात्मक हैं

839. गुणभृत् जो सत्व, रज और तम गुणों के अधिष्ठाता हैं

840. निर्गुणः जिनमे गुणों का अभाव है

841. महान् जो अंग, शब्द, शरीर और स्पर्श से रहित हैं और महान हैं

842. अधृतः जो किसी से भी धारण नहीं किये जाते

843. स्वधृतः जो स्वयं अपने आपसे ही धारण किये जाते हैं

844. स्वास्यः जिनका ताम्रवर्ण मुख अत्यंत सुन्दर है

845. प्राग्वंशः जिनका वंश सबसे पहले हुआ है

846. वंशवर्धनः अपने वंशरूप प्रपंच को बढ़ाने अथवा नष्ट करने वाले हैं

847. भारभृत् अनंतादिरूप से पृथ्वी का भार उठाने वाले हैं

848. कथितः सम्पूर्ण वेदों में जिनका कथन है

849. योगी योग ज्ञान को कहते हैं उसी से प्राप्त होने वाले हैं

850. योगीशः जो अंतरायरहित हैं

851. सर्वकामदः जो सब कामनाएं देते हैं

852. आश्रमः जो समस्त भटकते हुए पुरुषों के लिए आश्रम के समान हैं

853. श्रमणः जो समस्त अविवेकियों को संतप्त करते हैं

854. क्षामः जो सम्पूर्ण प्रजा को क्षाम अर्थात क्षीण करते हैं

855. सुपर्णः जो संसारवृक्षरूप हैं और जिनके छंद रूप सुन्दर पत्ते हैं

856. वायुवाहनः जिनके भय से वायु चलती है

857. धनुर्धरः जिन्होंने राम के रूप में महान धनुष धारण किया था

858. धनुर्वेदः जो दशरथकुमार धनुर्वेद जानते हैं

859. दण्डः जो दमन करनेवालों के लिए दंड हैं

860. दमयिता जो यम और राजा के रूप में प्रजा का दमन करते हैं

861. दमः दण्डकार्य और उसका फल दम

862. अपराजितः जो शत्रुओं से पराजित नहीं होते

863. सर्वसहः समस्त कर्मों में समर्थ हैं

864. अनियन्ता सबको अपने अपने कार्य में नियुक्त करते हैं

865. नियमः जिनके लिए कोई नियम नहीं है

866. अयमः जिनके लिए कोई यम अर्थात मृत्यु नहीं है

867. सत्त्ववान् जिनमे शूरता-पराक्रम आदि सत्व हैं

868. सात्त्विकः जिनमे सत्वगुण प्रधानता से स्थित है

869. सत्यः सभी चीनों में साधू हैं

870. सत्यधर्मपरायणः जो सत्य हैं और धर्मपरायण भी हैं

871. अभिप्रायः प्रलय के समय संसार जिनके सम्मुख जाता है

872. प्रियार्हः जो प्रिय ईष्ट वस्तु निवेदन करने योग्य है

873. अर्हः जो पूजा के साधनों से पूजनीय हैं

874. प्रियकृत् जो स्तुतिआदि के द्वारा भजने वालों का प्रिय करते हैं

875. प्रीतिवर्धनः जो भजने वालों की प्रीति भी बढ़ाते हैं

876. विहायसगतिः जिनकी गति अर्थात आश्रय आकाश है

877. ज्योतिः जो स्वयं ही प्रकाशित होते हैं

878. सुरुचिः जिनकी रुचि सुन्दर है

879. हुतभुक् जो यज्ञ की आहुतियों को भोगते हैं

880. विभुः जो सर्वत्र वर्तमान हैं और तीनों लोकों के प्रभु हैं

881. रविः जो रसों को ग्रहण करते हैं

882. विरोचनः जो विविध प्रकार से सुशोभित होते हैं

883. सूर्यः जो श्रीशोभा. को जन्म देते हैं

884. सविता सम्पूर्ण जगत का प्रसवउत्पत्ति. करने वाले हैं

885. रविलोचनः रवि जिनका लोचन अर्थात नेत्र हैं

886. अनन्तः जिनमे नित्य, सर्वगत और देशकालपरिच्छेद का अभाव है

887. हुतभुक् जो हवन किये हुए को भोगते हैं

888. भोक्ता जो जगत का पालन करते हैं

889. सुखदः जो भक्तों को मोक्षरूप सुख देते हैं

890. नैकजः जो धर्मरक्षा के लिए बारबार जन्म लेते हैं

891 अग्रजः जो सबसे आगे उत्पन्न होता है

892. अनिर्विण्णः जिन्हे सर्वकामनाएँ प्राप्त होनेकारण अप्राप्ति का खेद नहीं है

893. सदामर्षी साधुओं को अपने सम्मुख क्षमा करते हैं

894. लोकाधिष्ठानम् जिनके आश्रय से तीनों लोक स्थित हैं

895. अद्भुतः जो अपने स्वरुप, शक्ति, व्यापार और कार्य में अद्भुत है

896. सनात् काल भी जिनका एक विकल्प ही है

897. सनातनतमः जो ब्रह्मादि सनतानों से भी अत्यंत सनातन हैं

898. कपिलः बडवानलरूप में जिनका वर्ण कपिल है

899. कपिः जो सूर्यरूप में जल को अपनी किरणों से पीते हैं

900. अव्ययः प्रलयकाल में जगत में विलीन होते हैं

901. स्वस्तिदः भक्तों को स्वस्ति अर्थात मंगल देते हैं

902. स्वस्तिकृत् जो स्वस्ति ही करते हैं

903. स्वस्ति जो परमानन्दस्वरूप हैं

904. स्वस्तिभुक् जो स्वस्ति भोगते हैं और भक्तों की स्वस्ति की रक्षा करते हैं

905. स्वस्तिदक्षिणः जो स्वस्ति करने में समर्थ हैं

906. अरौद्रः कर्म, राग और कोप जिनमे ये तीनों रौद्र नहीं हैं

907. कुण्डली सूर्यमण्डल के समान कुण्डल धारण किये हुए हैं

908. चक्री सम्पूर्ण लोकों की रक्षा के लिए मनस्तत्त्वरूप सुदर्शन चक्र धारण किया है

909. विक्रमी जिनका डग तथा शूरवीरता समस्त पुरुषों से विलक्षण है

910. ऊर्जितशासनः जिनका श्रुति-स्मृतिस्वरूप शासन अत्यंत उत्कृष्ट है

911. शब्दातिगः जो शब्द से कहे नहीं जा सकते

912. शब्दसहः समस्त वेद तात्पर्यरूप से जिनका वर्णन करते हैं

913. शिशिरः जो तापत्रय से तपे हुओं के लिए विश्राम का स्थान हैं

914. शर्वरीकरः ज्ञानी-अज्ञानी दोनों की शर्वरीयों रात्रि. के करने वाले हैं

915. अक्रूरः जिनमे क्रूरता नहीं है

916. पेशलः जो कर्म, मन, वाणी और शरीर से सुन्दर हैं

917. दक्षः बढ़ा-चढ़ा, शक्तिमान तथा शीघ्र कार्य करने वाला ये तीनों दक्ष जिनमे है

918. दक्षिणः जो सब ओर जाते हैं और सबको मारते हैं

919. क्षमिणांवरः जो क्षमा करने वाले योगियों आदि में श्रेष्ठ हैं

920. विद्वत्तमः जिन्हे सब प्रकार का ज्ञान है और किसी को नहीं है

921. वीतभयः जिनका संसारिकरूप भय बीतनिवृत्त हो. गया है

922. पुण्यश्रवणकीर्तनः जिनका श्रवण और कीर्तन पुण्यकारक है

923. उत्तारणः संसार सागर से पार उतारने वाले हैं

924. दुष्कृतिहा पापनाम की दुष्क्रितयों का हनन करने वाले हैं

925. पुण्यः अपनी स्मृतिरूप वाणी से सबको पुण्य का उपदेश देने वाले हैं

926. दुःस्वप्ननाशनः दुःस्वप्नों को नष्ट करने वाले हैं

927. वीरहा संसारियों को मुक्ति देकर उनकी गतियों का हनन करने वाले हैं

928. रक्षणः तीनों लोकों की रक्षा करने वाले हैं

929. सन्तः सन्मार्ग पर चलने वाले संतरूप हैं

930. जीवनः प्राणरूप से समस्त प्रजा को जीवित रखने वाले हैं

931. पर्यवस्थितः विश्व को सब ओर से व्याप्त करके स्थित है

932. अनन्तरूपः जिनके रूप अनंत हैं

933. अनन्तश्रीः जिनकी श्री अपरिमित है

934. जितमन्युः जिन्होंने मन्यु अर्थात क्रोध को जीता है

935. भयापहः पुरुषों का संस्कारजन्य भय नष्ट करने वाले हैं

936. चतुरश्रः न्याययुक्त

937. गभीरात्मा जिनका मन गंभीर है

938. विदिशः जो विविध प्रकार के फल देते हैं

939. व्यादिशः इन्द्रादि को विविध प्रकार की आज्ञा देने वाले हैं

940. दिशः सबको उनके कर्मों का फल देने वाले हैं

941. अनादिः जिनका कोई आदि नहीं है

942. भूर्भूवः भूमि के भी आधार है

943. लक्ष्मीः पृथ्वी की लक्ष्मी अर्थात शोभा हैं

944. सुवीरः जो विविध प्रकार से सुन्दर स्फुरण करते हैं

945. रुचिरांगदः जिनकी अंगदभुजबन्द. कल्याणस्वरूप हैं

946. जननः जंतुओं को उत्पन्न करने वाले हैं

947. जनजन्मादिः जन्म लेनेवाले जीव की उत्पत्ति के कारण हैं

948. भीमः भय के कारण हैं

949. भीमपराक्रमः जिनका पराक्रम असुरों के भय का कारण होता है

950. आधारनिलयः पृथ्वी आदि पंचभूत आधारों के भी आधार है

951. अधाता जिनका कोई धाताबनाने वाला. नहीं है

952. पुष्पहासः पुष्पों के हास खिलने.के समान जिनका प्रपंचरूप से विकास होता है

953. प्रजागरः प्रकर्षरूप से जागने वाले हैं

954. ऊर्ध्वगः सबसे ऊपर हैं

955. सत्पथाचारः जो सत्पथ का आचरण करते हैं

956. प्राणदः जो मरे हुओं को जीवित कर सकते हैं

957. प्रणवः जिनके वाचक ॐ कार का नाम प्रणव है

958. पणः जो व्यवहार करने वाले हैं

959. प्रमाणम् जो स्वयं प्रमारूप हैं

960. प्राणनिलयः जिनमे प्राण अर्थात इन्द्रियां लीन होती है

961. प्राणभृत् जो अन्नरूप से प्राणों का पोषण करते हैं

962. प्राणजीवनः प्राण नामक वायु से प्राणियों को जीवित रखते हैं

963. तत्त्वम् तथ्य, अमृत, सत्य ये सब शब्द जिनके वाचक हैं

964. तत्त्वविद् तत्व अर्थात स्वरुप को यथावत जानने वाले हैं

965. एकात्मा जो एक आत्मा हैं

966. जन्ममृत्युजरातिगः जो न जन्म लेते हैं न मरते हैं

967. भूर्भुवःस्वस्तरुः भू,भुवः और स्वः जिनका सार है उनका होमादि करके प्रजा तरती है

968. तारः संसार सागर से तारने वाले हैं

969. सविताः सम्पूर्ण लोक के उत्पन्न करने वाले हैं

970. प्रपितामहः पितामह ब्रह्मा के भी पिता है

971. यज्ञः यज्ञरूप हैं

972. यज्ञपतिः यज्ञों के स्वामी हैं

973. यज्वा जो यजमान रूप से स्थित हैं

974. यज्ञांगः यज्ञ जिनके अंग हैं

975. यज्ञवाहनः फल हेतु यज्ञों का वहन करने वाले हैं

976. यज्ञभृद् यज्ञ को धारण कर उसकी रक्षा करने वाले हैं

977. यज्ञकृत् जगत के आरम्भ और अंत में यज्ञ करते हैं

978. यज्ञी अपने आराधनात्मक यज्ञों के शेषी हैं

979. यज्ञभुक् यज्ञ को भोगने वाले हैं

980. यज्ञसाधनः यज्ञ जिनकी प्राप्ति का साधन है

981. यज्ञान्तकृत् यज्ञ के फल की प्राप्ति कराने वाले हैं

982. यज्ञगुह्यम् यज्ञ द्वारा प्राप्त होने वाले

983. अन्नम् भूतों से खाये जाते हैं

984. अन्नादः अन्न को खाने वाले हैं

985. आत्मयोनिः आत्मा ही योनि है इसलिए वे आत्मयोनि है

986. स्वयंजातः निमित्त कारण भी वही हैं

987. वैखानः जिन्होंने वराह रूप धारण करके पृथ्वी को खोदा था

988. सामगायनः सामगान करने वाले है

989. देवकीनन्दनः देवकी के पुत्र

990. स्रष्टा सम्पूर्ण लोकों के रचयिता हैं

991. क्षितीशः क्षिति अर्थात पृथ्वी के ईश स्वामी. हैं

992. पापनाशनः पापों का नाश करने वाले हैं

993. शंखभृत् जिन्होंने पांचजन्य नामक शंख धारण किया हुआ है

994. नन्दकी जिनके पास विद्यामय नामक खडग है

995. चक्री जिनकी आज्ञा से संसारचक्र चल रहा है

996. शार्ङ्गधन्वा जिन्होंने शारंग नामक धनुष धारण किया है

997. गदाधरः जिन्होंने कौमोदकी नामक गदा धारण किया हुआ है

998. रथांगपाणिः जिनके हाथ में रथांग अर्थात चक्र है

999. अक्षोभ्यः जिन्हे क्षोभित नहीं किया जा सकता

1000. सर्वप्रहरणायुधः प्रहार करने वाली सभी वस्तुएं जिनके आयुध हैं

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